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यस आई एम— 29






















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"उफ्फ.......! ये माइंड थॉटस ने तो मेरे ही माइंड की बैंड बजा दी। जितना मै सोच रही थी इस तरह की कहानी लिखना उतना भी ज्यादा आसान नहीं है। मुझे अब ऐसा लग रहा है कि इन थॉट्स की वजह से मै पागल ही ना हो जाऊं।" इतना कहने के बाद तृष्णा ने लिखना वही पर ही छोड़ दिया और अपना सिर पकड़ कर बैठ गई। कुछ देर इसी हालत में रहने के बाद वह खुद से ही बातें करने लगी। "एक तो मेरे पास बात करने ले लिए कोई भी नही है, अगर होता तो अपने आइडियाज उसके साथ शेयर कर देती। वैसे देखा जाए किसी का ना होना भी अच्छी बात है, इस बात का अपना एक अलग ही फायदा है। अगर कोई ओर मेरे पास होता तो वह अपनी अलग राय देता और मै अपनी अलग। इस से सिर्फ ओर सिर्फ कन्फ्यूजन ही क्रिएट होता।" इतनी बात कहने के बाद तृष्णा ने एक लंबी आह भरी और उसके बाद खुद को समझाते हुए बोली।







"सबसे पहले तुम्हें अपने माइंड को रिलैक्स करना चाहिए। कुछ देर पहले नॉवेल में तूने खुद ही तो लिखा है कि माइंड वर्क फिजिकल वर्क से ज्यादा थका देने वाला होता है। पता होने के बाद भी तुम्हें  यह गलती बिल्कुल भी नही दोहरानी चाहिए। दिमाग को आराम देने के बाद तू कहानी को पहले से भी ज्यादा बेहतर तरीके से लिख सकती है और अगर तू आराम नही करेंगी तो इस अच्छे खासे नॉवेल का कचरा कर देंगी। माना इस वक्त तेरा फ्लो बना हुआ है पर ये फ्लो तेरी हेल्थ से बढ़कर तो नही है !" इतना बोलने के बाद तृष्णा ने गहरी सांस लेने और छोड़ने वाली प्रक्रिया शुरू कर। उस ने यह प्रक्रिया कई बार दोहराई और उसके बाद पानी पीने चली गई। पानी पी कर लौटने के बाद तृष्णा ने अपने लैपटॉप को ले जाकर मेज के ऊपर रख दिया और खुद कुर्सी पर बैठ गई।





"अगर आप इतनी देर तक माइंड वर्क कर लेते हो तो आप के माइंड को सबसे पहले ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है और ऑक्सीजन लेने के दो ही सबसे आसान तरीके है। पहला तरीका है लंबी गहरी सांसे लो और दूसरा तरीका है आप पानी पी ले क्योंकि पानी में भी प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन होती है।" इतना कहने के बाद वह अपने फोन में राइटिंग ऐप में अपडेट चेक करने लगी। ऐप को स्क्रॉल करते हुए अचानक से उसकी नजर एक पोस्ट पर पड़ी। उस पोस्ट को देखकर तृष्णा के चेहरे पर अजीब से भाव आ गए और उस पोस्ट को देखने के बाद वह सिर्फ इतना ही बोल पाई।



"अब तो बिल्कुल हद ही हो गई। मुझे लगता था कि बाकि के राइटर अस्मिता राजपूत के बारे में जो कुछ बोलते थे वह सब झूठ था। पर अब मुझे अपनी आंखों पर यकीन हो गया है। ये लेखिका स्टारडम के लिए कुछ भी कर सकती है, बोले तो कुछ भी।"



इतनी बात बोलने के बाद तृष्णा ने खुद से ही सवाल जवाब करना शुरू कर दिया। "क्या मुझे अभी इस पोस्ट पर रिएक्ट करना चाहिए?" अगले ही पल वह खुद ही अपनी इस बात का जवाब देती हुई बोली। "नही..! अभी तो बिल्कुल भी नही। कम से कम तब तक तो बिल्कुल भी नही जब तक मेरा नॉवेल सही ढंग से पूरा नही लिखा जाता। नॉवेल के पूरा होने तक मेरे पास इतना समय तो है ही कि मै अस्मिता राजपूत के बारे में अच्छे से रिसर्च कर सकूं। वैसे भी मेरी छठी इंद्री मुझे संकेत दे रही है कि इस लेखिका का इन फ्यूचर मेरे साथ पंगा होने वाला है। अगर ऐसा हुआ तो मुझे इस लेखिका के बारे में छोटी से छोटी इनफॉर्मेशन पहले ही कलेक्ट कर लेनी चाहिए। इसके अलावा कौन सा बड़ा राइटर इसके साथ है और कौन सा बड़ा राइटर इसके ऑपोजिट में है, इस बात का तो मुझे सबसे ज्यादा ध्यान रखना चाहिए। वैसे भी एक फेमस कहावत तो आप लोगों ने सुनी ही होंगी ‘दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है।’ इतना कहने के बाद तृष्णा अपने फोन में उस लेखिका से जुड़ी हुई जानकारी सर्च करने लगी। सर्च करने के बाद तृष्णा ने जो कुछ भी देखा उसे देखकर वह हैरान रह गई और उसी हैरानी के भाव को बरकरार रखते हुए बोली।



"व्हाट इज थिस? इतनी बड़ी राइटर होने के बाद भी यह किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नही है। ऐसे कैसे हो सकता है? जरूर इस बात के पीछे भी कोई बहुत बड़ा झोल है या फिर इस लेखिका ने अपने नाम के अलावा किसी दूसरे नाम से अकाउंट बनाया हुआ है।" अपनी इतनी बात कहने के बाद तृष्णा दोबारा फिर से फोन में कुछ चेक करने लगी और उसे चेक करने के बाद खुद से ही बातें करने लगी।





"वेल....! जितना मुझे लगता है अब मुझे भी इस फील्ड में सर्च करनी ही पड़ेगी, अगर अभी नहीं की तो बाद में बाकी के लेखकों की तरह मुझे भी पछताना ही पड़ेगा और ऐसा मै कभी होने नही दूंगी। मेरा सबसे पहला काम होना चाहिए खुद को प्रोटेक्ट करना और मुझे पता है कि इसमें मेरी सबसे ज्यादा मदद कौन कर सकता है।" इतना बोलने के बाद तृष्णा अपने कॉन्टेक्ट लिस्ट में किसी का नम्बर सर्च करने लगी। जैसे ही उसे वह नंबर मिल गया वैसे ही उसने बेड पर रखा हुआ अपना लैपटॉप उठा लिया और उसे बैग में डाल कर बाहर चली गई। वह इतनी जल्दबाजी में घर से बाहर निकली थी कि उसकी वजह से सही से पता ही नही चल पाया की वह आखिर कहां गई है।









शाम को थकी हारी तृष्णा अपना काम करके घर लौट चुकी थी और इतना अधिक थक चुकी थी कि आते ही बेड पर लेट गई। कुछ देर आराम करने के बाद वह अंगड़ाई लेते हुए खुद से बोली। "देखा जाए मै आज अपने नॉवेल का आधे से ज्यादा हिस्सा लिख लेती पर उस पोस्ट को देखकर मेरा दिमाग खराब हो गया। जिसके बाद मै चाहकर भी कुछ नहीं लिख सकती थी। इसी वजह से मुझे बाहर जाना ही सही लगा। वैसे मानना पड़ेगा मैडम क्या माइंड गेम खेलती है, एक बार को तो मै भी उस माइंड गेम में फंस गई। पर जब मै अपनी कहानी के उस कैरेक्टर को संभाल सकती हूं जो मुझ से एकदम ऑपोजिट है तो ये मैडम तो उसके सामने क्या ही होंगी?" इतना बोलने के बाद तृष्णा ने अपनी आंखे बंद कर ली और थोड़ी देर इसी तरह आंखें बंद करके लेटने की वजह से उसकी आंख लग गई।







सुबह हो चुकी थी तृष्णा इस वक्त अपने बेड पर लेटी हुई थी। तभी खिड़की से आती हुई सूरज की पहली किरण सीधा आकर उसके चेहरे पर पड़ी, जिसकी वजह से उसकी आंखें खुल गई। आंखे खुलते ही वह हैरानी के साथ अपने आस पास देखने लगी। अपने आस पास के वातावरण को कुछ देर ध्यान से देखने के बाद वह इतना ही बोली। "शीट .....! मुझे तो कहानी लिखनी थी और मै उल्टा पड़ कर सो गई। मेरा कुछ भी नही सकता। नींद के मामले में तो मै कुंभकर्ण को भी पीछे छोड़ दूं।" इतनी बात कहने के बाद तृष्णा ने अपने सिर पर एक चपत लगाई और वॉशरूम में फ्रेश होने के लिए चली गई।





वहां से आने के बाद तृष्णा मिरर के सामने आकर खड़ी हो गई और अपने बालों को संवारते हुए अपनी मिरर इमेज से बातें करने लगी। "गौर से देख इस मासूम सी और नाजुक सी बच्ची को, जो तू इसे पूरा दिन काम पर लगा कर रखती है। क्या तुझे इसे देखकर जरा सा भी तरस नहीं आता। इस प्यारी सी बच्ची की एक मुस्कान से सब सही हो जाए और तू जिसने अभी तक लिखने का ल भी सही से सीखा नही। इस बच्ची की अभी से ही दुश्मन बन गई है। इतना लिखने के बाद रात तुझे इस से ओर भी लिखवाना था, अब जान ले ले इस बच्ची की।" ऐसा लग रहा था की वह मिरर इमेज तृष्णा से सवाल पूछ रही है जिसके सवाल का तृष्णा जवाब देती हुई बोली।



"बस करो , मैं इस बच्ची से इतना भी काम नही कराती, जितना ये बच्ची मुझे ताना दे रही है। अगर मुझे इसकी फिक्र नहीं होती तो मै कल वापिस आने के बाद सोती नही उल्टा काम करती।" तृष्णा आगे कुछ कह पाती उसे लगा वह मिरर इमेज उसे कुछ बोल रही है। "बस भी करो, खुद से इतना झूठ कौन बोलता है? वो तो कल गलती से तुम्हारी आंख लग गई जिसकी वजह से तुम सो गई। तुम मुझे आराम करने दो ऐसा तो कभी हो ही नही सकता।" वह मिरर इमेज आगे कुछ कह पाती तृष्णा अपने बालों में कंघी कर मिरर के सामने से हट चुकी थी। कुछ देर इधर उधर भटकने के बाद वह खुद से ही बातें करने लगी।





"चलो अच्छा हुआ कल मै सो गई , उसी वजह से मै आज इतना फ्रेश फ्रेश फील कर रही हूं।" इतना कहने के बाद वह किचन में खाना बनाने के लिए चली गई और खाना बनाते हुए खुद से ही बातें करने लगी। "क्या तूने अपनी एक हरकत पर गौर किया? उस सनकी लड़की के बारे में लिखते लिखते तू भी उसी की तरह खुद से बातें और सवाल जवाब करने लगी है। पर इसमें तेरी भी कोई गलती नही है। जब कैरेक्टर ही ऐसा लिख रही है तो इन बातों का सामना तो तुझे करना ही पड़ेगा।" खुद से बातें करते करते तृष्णा ने कब खाना बना लिया उसे भी पता  नही चला। बने हुए खाने को प्लेट में डाल कर वह उसे अपने रूम में ले आई और जाकर बेड पर बैठ गई। कुछ ही देर में उसने खाना खा लिया। खाना खाने के बाद प्लेट किचन में रखकर वह दोबारा फिर से अपने बेड पर आकर बैठ गई और खुद से बातें करने लगी।



"एक बात तो बहुत अच्छी हुई कि आज सैटरडे है मतलब यूनिवर्सिटी ऑफ रहेगी। जिसका सीधा सा मतलब है कि आज मै बहुत ज्यादा लिख सकती हूं। पर कल मैंने नॉवेल को ऐसे सिरे पर छोड़ा था जहां से मुझे उसे लगभग एक नई शुरुवात देनी पड़ेगी। लिखने से पहले मुझे इंग्लिश सॉन्ग सुन लेने चाहिए। क्या पता आगे का लिखने किए कुछ आइडिया ही मिल जाए। सॉन्ग सुनने के बाद ही नॉवेल के बारे में सोचूंगी।" इतना कहते ही तृष्णा अपने कानों पर हेडफोन लगा कर अपने बेड पर लेट गई।





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To be continued.............


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